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Friday, April 24, 2020

मानवता के मशीहा- युग प्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी

मानवता के मशीहा युग प्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी का संक्षिपत जीवन सार :



                     Image source:- google

10 दिसंबर, 1930
जन्म,  पश्चिम पाकिस्तान के जिला पेशावर में बाबा अवतार सिंह जी एवं माता बुधवंती जी (जगत माता) के घर।
22 अप्रैल, 1947
विवाह,  पू कुलवंत कौर जी (निरंकारी राजमाता) के साथ।
13 दिसंबर 1962
सद्गुरु के रूप में प्रकट हुए।


17-18 जुलाई, 1965
पहली मंसूरी कांफ्रेंस जिसमें देश भर के निरंकारी प्रचारको-प्रबंधकों ने प्रबंध प्रचार और भवन निर्माण संबंधी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। प्रबंध की दृष्टि से सारे देश को कुछ जोनों में बांटा गया। जोन इंचार्ज, प्रमुख और मुखी नियुक्त किए गए। निरंकारी मिशन के इतिहास में यह अपनी तरह की पहली कॉन्फ्रेंस थी।
3 जुलाई, 1967
पहली विश्व कल्याण यात्रा। आपकी विश्व कल्याण यात्राओं का यह सिलसिला 1977 तक चलता रहा।
17 सितंबर, 1969
युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी ब्रह्मलीन। आपने 17 सितंबर के दिन को कोई महत्व न देते हुए प्रति वर्ष 15 अगस्त का दिन 'प्रेरणा दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की।
27-30 अक्टूबर, 1972
संत निरंकारी मिशन का सिल्वर जुबली संत समागम। निरंकारी भक्तों ने इस चार दिवसीय समागम में आपको तथा निरंकारी राजमाता जी को करेंसी नोटों से तोला। आप द्वारा समस्त धनराशि समाज कल्याण के कार्यो के लिए अर्पण।
14-16 मई, 1973
दूसरी मंसूरी कॉन्फ्रेंस जिसमें देश भर के लगभग 500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।  नशाखोरी तथा दहेज के प्रदर्शन जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध निर्णय। निरंकारी आचार संहिता का निर्माण। युवाओं को
जनवरी, 1975
लोकप्रिय कॉलेज, सोहना का प्रबंध मंडल ने संभाला। आजकल यह कॉलेज निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह मेमोरियल कॉलेज के नाम से जाना जाता है।
26 अप्रैल, 1975
लुधियाना कॉन्फ्रेंस जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के निरंकारी प्रचारको प्रबंधकों ने भाग लेकर प्रचार और प्रबंध संबंधी निर्णय लिए।
13 अप्रैल , 1978
अमृतसर के निरंकारी 'मानव एकता सम्मेलन' पर सशस्त्र कट्टरपंथियों द्वारा हमला। परिणाम स्वरूप 18 व्यक्तियों की मृत्यु। अकाली सरकार का दमन चक्र और बाबा गुरबचन सिंह जी सहित 66 निर्दोष निरंकारी भक्तों पर मुकदमा।
26 सितंबर, 1978
सशस्त्र कट्टरपंथियों द्वारा कानपुर के निरंकारी सत्संग भवन में हो रहे सत्संग पर प्राणघातक हमला। 6 व्यक्तियों की मृत्यु। दैवायोग से हमलावर आप तक नहीं पहुंच सके।
12 फरवरी, 1979
कार्यकारिणी समिति के सदस्यों की संख्या 7 से बढ़ाकर 13 कर दी गई।
51 सदस्यों की एक कार्यकारी समिति का निर्माण। प्रदेशों के लिए प्रादेशिक समितियों का गठन।
15 अगस्त, 1979
इस दिवस को सभी ब्रह्मलीन संतो के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए 'मुक्ति दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा।
4 जनवरी, 1980
करनाल के सेशन जज द्वारा सभी निरंकारी बाइज्जत बरी।
14 जनवरी, 1980
प्रति वर्ष जनवरी माह में संतोख सरोवर पर आयोजित होने वाले समागम को आगे से दूसरे सप्ताह में किसी भी छुट्टी वाले दिन 'भक्ति दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा।
19 मार्च, 1980
दुर्ग में कट्टरपंथियों द्वारा एक और हमला। जिसमें एक बहन शहीद हो गई। संयोगवश आप उस कार में नहीं थे।
13 अप्रैल, 1980
चंडीगढ़ में पंजाब-हरियाणा का 'मानव एकता सम्मेलन' जिसमें आपने गुरु के शरीर से हटकर गुरु-वचन के साथ जुड़ने की प्रेरणा दी। शरीर त्याग का पूर्व संकेत।
24 अप्रैल, 1980
पहाड़गंज (दिल्ली) में हुए सत्संग से वापस निरंकारी कालोनी लौटने पर हत्यारों द्वारा गोलियों से हमला कर दिया गया और सत्गुरु बाबा गुरु बचन सिंह जी महाराज ब्रह्मलीन हो गये। 24 अप्रैल को पूरा निरंकारी मिशन मानव एकता दिवस के रूप में मनाता है।

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