Nirankari live

Saturday, April 25, 2020

जिंदगी है अमानत हुज़ूर आपकी..

                        
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                             ज़िन्दगी है अमानत हुज़ूर आपकी,
                             अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2 
                             जिस कदम पर भी हमसे कोई भूल हो, 
                             अपने बच्चे समझ कर बता दीजिये-2
                             ज़िन्दगी है अमानत हुज़ूर आपकी,
                             अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2 

                             हम खुदा को भी बंदा समजते रहे , 

                             आप क्या है और हम क्या समझते रहे-2 
                             मन के विश्वास मैं जो रुकावट बने,  
                             ऐसा पर्दा नजर से हटा दीजिये-2 
                             ज़िन्दगी है अमानत हुज़र आपकी,
                             अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2 

                             मन परेशान हो कुछ  ना अच्छा लगे, 
                             इनके  ही सामने फिर गुजारिश करे -2 
                             मेरे बाबा किसी ना किसी रूप मैं,  
                             अपनी मोहिनी सूरत दिखा  दीजिये-2 
                             ज़िन्दगी है अमानत हुज़ूर आपकी,
                             अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2 

                              जब भी हमसे कोई भूल हो जाती है
                              मुस्कुराहट इनकी कहीं खो जाती  है -2 
                              अपनी मीठी सी मुस्कान यू छीनकर, 
                              हमको इतनी बड़ी ना सजा  दीजिये -2 
                              ज़िन्दगी है अमानत हुज़ूर आपकी,
                              अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2 

                              समता,रेणुका ना सुदीक्षा करे,  
                              कुछ भी ऐसा  जो इनको ना अच्छा लगे -
                              खुश जो रखे हमेंशा "विवेक" आपको,  
                              कोई हमको भी  ऎसी कला दीजिये -2

                              ज़िन्दगी है अमानत हुज़ूर आपकी
                              अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2 
                             जिस कदम पर भी हमसे कोई भूल हो,           
                             अपने बच्चे समज कर बता दीजिये-2

                              ज़िन्दगी है अमानत हुज़ूर आपकी,

                              अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2
                              ज़िन्दगी है अमानत हुज़ूर आपकी,
                              अपने दर पर इसे बस निभा दीजिये-2    
                           
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                    MAANVATA KE MASHIHA

Friday, April 24, 2020

मानवता के मशीहा- युग प्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी

मानवता के मशीहा युग प्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी का संक्षिपत जीवन सार :



                     Image source:- google

10 दिसंबर, 1930
जन्म,  पश्चिम पाकिस्तान के जिला पेशावर में बाबा अवतार सिंह जी एवं माता बुधवंती जी (जगत माता) के घर।
22 अप्रैल, 1947
विवाह,  पू कुलवंत कौर जी (निरंकारी राजमाता) के साथ।
13 दिसंबर 1962
सद्गुरु के रूप में प्रकट हुए।


17-18 जुलाई, 1965
पहली मंसूरी कांफ्रेंस जिसमें देश भर के निरंकारी प्रचारको-प्रबंधकों ने प्रबंध प्रचार और भवन निर्माण संबंधी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। प्रबंध की दृष्टि से सारे देश को कुछ जोनों में बांटा गया। जोन इंचार्ज, प्रमुख और मुखी नियुक्त किए गए। निरंकारी मिशन के इतिहास में यह अपनी तरह की पहली कॉन्फ्रेंस थी।
3 जुलाई, 1967
पहली विश्व कल्याण यात्रा। आपकी विश्व कल्याण यात्राओं का यह सिलसिला 1977 तक चलता रहा।
17 सितंबर, 1969
युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी ब्रह्मलीन। आपने 17 सितंबर के दिन को कोई महत्व न देते हुए प्रति वर्ष 15 अगस्त का दिन 'प्रेरणा दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की।
27-30 अक्टूबर, 1972
संत निरंकारी मिशन का सिल्वर जुबली संत समागम। निरंकारी भक्तों ने इस चार दिवसीय समागम में आपको तथा निरंकारी राजमाता जी को करेंसी नोटों से तोला। आप द्वारा समस्त धनराशि समाज कल्याण के कार्यो के लिए अर्पण।
14-16 मई, 1973
दूसरी मंसूरी कॉन्फ्रेंस जिसमें देश भर के लगभग 500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।  नशाखोरी तथा दहेज के प्रदर्शन जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध निर्णय। निरंकारी आचार संहिता का निर्माण। युवाओं को
जनवरी, 1975
लोकप्रिय कॉलेज, सोहना का प्रबंध मंडल ने संभाला। आजकल यह कॉलेज निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह मेमोरियल कॉलेज के नाम से जाना जाता है।
26 अप्रैल, 1975
लुधियाना कॉन्फ्रेंस जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के निरंकारी प्रचारको प्रबंधकों ने भाग लेकर प्रचार और प्रबंध संबंधी निर्णय लिए।
13 अप्रैल , 1978
अमृतसर के निरंकारी 'मानव एकता सम्मेलन' पर सशस्त्र कट्टरपंथियों द्वारा हमला। परिणाम स्वरूप 18 व्यक्तियों की मृत्यु। अकाली सरकार का दमन चक्र और बाबा गुरबचन सिंह जी सहित 66 निर्दोष निरंकारी भक्तों पर मुकदमा।
26 सितंबर, 1978
सशस्त्र कट्टरपंथियों द्वारा कानपुर के निरंकारी सत्संग भवन में हो रहे सत्संग पर प्राणघातक हमला। 6 व्यक्तियों की मृत्यु। दैवायोग से हमलावर आप तक नहीं पहुंच सके।
12 फरवरी, 1979
कार्यकारिणी समिति के सदस्यों की संख्या 7 से बढ़ाकर 13 कर दी गई।
51 सदस्यों की एक कार्यकारी समिति का निर्माण। प्रदेशों के लिए प्रादेशिक समितियों का गठन।
15 अगस्त, 1979
इस दिवस को सभी ब्रह्मलीन संतो के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए 'मुक्ति दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा।
4 जनवरी, 1980
करनाल के सेशन जज द्वारा सभी निरंकारी बाइज्जत बरी।
14 जनवरी, 1980
प्रति वर्ष जनवरी माह में संतोख सरोवर पर आयोजित होने वाले समागम को आगे से दूसरे सप्ताह में किसी भी छुट्टी वाले दिन 'भक्ति दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा।
19 मार्च, 1980
दुर्ग में कट्टरपंथियों द्वारा एक और हमला। जिसमें एक बहन शहीद हो गई। संयोगवश आप उस कार में नहीं थे।
13 अप्रैल, 1980
चंडीगढ़ में पंजाब-हरियाणा का 'मानव एकता सम्मेलन' जिसमें आपने गुरु के शरीर से हटकर गुरु-वचन के साथ जुड़ने की प्रेरणा दी। शरीर त्याग का पूर्व संकेत।
24 अप्रैल, 1980
पहाड़गंज (दिल्ली) में हुए सत्संग से वापस निरंकारी कालोनी लौटने पर हत्यारों द्वारा गोलियों से हमला कर दिया गया और सत्गुरु बाबा गुरु बचन सिंह जी महाराज ब्रह्मलीन हो गये। 24 अप्रैल को पूरा निरंकारी मिशन मानव एकता दिवस के रूप में मनाता है।

Saturday, April 18, 2020

मैंनू है आस तेरी

 
मैंनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा, 
तेरी याद  विच ही बीते हर शाम ते सवेरा। 

तू पातशाह मै गोल्ली, तेनु कीवे रिझावां, 
ऐ दो जहॉ दे मलिक सुन लै मेरी सदावां, 
रुलदे होए दा प्रीतम,चरनां च रख बसेरा,  
तेरी याद विच ..... 

मेरे रोम रोम अंदर बस जाये याद तेरी, 
 होका दिया मैंने लेके आशिरवाद तेरी,
  हुंन ना भुलायी  दाता ,भुल्या हा मैं  बथेरा, 
तेरी याद विच ..... 

झोली चे मेरी हीरा, मुरशद ने जद तो पाया, 
खुशियां चे नच्या "बाबू" ते रूह न गीत गया, 
 तलियां चों नूर तक के नसदा गया हनेरा, 
तेरी याद विच .....  

धुन: ओ रात के मुसाफिर 

Source :- Sab rang ek sang

Friday, April 17, 2020

सबै भूमि गोपाल की। वह जाने

सबै भूमि गोपाल की। वह जाने
एक फकीर के दो बड़े प्यारे बेटे थे, जुड़वां बेटे थे। 
नगर की शान थे। सम्राट भी उन बेटों को देखकर ईर्ष्या से भर जाता था। 
सम्राट के बेटे भी वैसे सुंदर नहीं थे, वैसे प्रतिभाशाली नहीं थे। उसे गांव में रोशनी थी उन दो बेटों की। उनका व्यवहार भी इतना ही शालीन था, भद्र था। वह सूफी फकीर उन्हें इतना प्रेम करता था, उनके बिना कभी भोजन नहीं करता था, उनके बिना कभी रात सोने नहीं जाता था। एक दिन मस्जिद से लौटा प्रार्थना करके, घर आया, तो आते ही से पूछा, बेटे कहां हैं? रोज की उसकी आदत थी। उसकी पत्नी ने कहा, पहले भोजन कर लें, फिर बताऊं, थोड़ी लंबी कहानी है। 
पर उसने कहा, मेरे बेटे कहां हैं?  उसने कहा कि आपसे एक बात कहूं? बीस साल पहले एक धनपति गांव का हीरे—जवाहरातो से भरी हुई एक थैली मेरे पास अमानत में रख गया था। आज वापस मांगने आया था। तो मैं उसे दे दूं कि न दूं?  फकीर बोला, पागल, यह भी कोई पूछने की बात है? उसकी अमानत, उसने दी थी, बीस साल वह हमारे पास रही, इसका मतलब यह तो नहीं कि हम उसके मालिक हो गए। तूने दे क्यों नहीं दी? अब मेरे से पूछने के लिए रुकी है? यह भी कोई बात हुई! उसी वक्त दे देना था। झंझट टलती। तो उसने ‘कहा, फिर आप आएं, फिर कोई अड़चन नहीं है। वह बगल के कमरे में ले गयी, वे दोनों बेटे नदी में डूबकर मर गए थे। नदी में तैरने गए थे, डूब गए। उनकी लाशें पड़ी थीं, उसने चादर उढा दी थी, फूल डाल दिये थे लाशों पर। उसने कहा, मैं इसीलिए चाहती थी कि आप पहले भोजन कर लें। बीस साल पहले जिस धनी ने ये हीरे—जवाहरात हमें दिए थे, आज वह वापस मागने आया था और आप कहते हैं कि दे देना था, सो मैंने दे दिए। यही भाव है। 
उसने दिया, उसने लिया। बीच में तुम मालिक मत बन जाना। मालकियत नहीं होनी चाहिए। मिल्कियत कितनी भी हो, मालकियत नहीं होनी चाहिए।  बड़ा राज्य हो, मगर तुम उस राज्य में ऐसे ही जीना जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं है। तुम्हारा है भी नहीं कुछ। जिसका है उसका है। 
सबै भूमि गोपाल की। वह जाने। 
तुम्हें थोड़ी देर के लिए मुख्यार बना दिया, कि सम्हालो। तुमने थोड़ी देर मुख्यारी कर ली, मालिक मत बन जाओ। भूलो मत। जिसने दिया है, ले लेगा। 
जितनी देर दिया है, धन्यवाद! जब ले ले, तब भी धन्यवाद! जब दिया, तो इसका उपयोग कर लेना, जब ले ले, तो उस लेने की घड़ी का भी उपयोग कर लेना,

यह भी नहीं रहने वाला

         एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका। आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।
 साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"        
*साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।"
 साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।      
 दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया। आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । 
साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"      आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। 
समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला।"     
  *साधू मन ही मन सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद।"     
  कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद  तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है ।  मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया। साधू ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया ।   भगवान्  करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"     यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "महाराज  ! अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है।"   साधू ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?" 
    आनंद उत्तर दिया - "हाँ! या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं  है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा।" आनंद  की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।      साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद  का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।*          
         कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।                   रो रही हैं शबनमें, नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।                   जिनके महलों में हजारों रंग के जलते थे फानूस।                   झाड़ उनके कब्र पर, बाकी निशां कुछ भी नहीं।
 *साधू कहता है - "अरे इन्सान! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"  साधू कहने लगा - "धन्य है आनंद! तेरा सत्संग, और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु! मैं तो झूठा साधू हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।"   *साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद  ने अपनी तस्वीर  पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी  नहीं रहेगा* ।"


सहनशीलता:- सबसे बड़ी शक्ति

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एक बार एक साँप आरी से टकराकर  मामूली सा जख्मी हो गया। घबराहट में सांप ने पलट कर आरी पर पूरी ताक़त से डंक मार दिया जिस कारण उसके मुंह से खून बहना शुरू हो गया। अब की बार सांप ने अपने व्यवहार के अनुसार आरी से लिपट कर उसे जकड़ कर और दम घोंट कर मारने की पूरी कोशिश कर डाली। अब सांप अपने गुस्से की वजह से बुरी तरह घायल हो गया।

 दूसरे दिन जब दुकानदार ने दुकान खोली तो सांप को आरी से लिपटा मरा हुआ पाया । जो किसी और कारण से नहीं केवल अपनी तैश और गुस्से की भेंट चढ़ गया था। 
कभी कभी गुस्से में हम दूसरों को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं मगर समय बीतने के  बाद हमें पता चलता है कि हमने अपने आप का ज्यादा नुकसान किया है। 
सीख - - अच्छी जिंदगी के लिए कभी कभी हमें, कुछ चीजों को, कुछ लोगों को, कुछ घटनाओं को,कुछ कामों को और कुछ बातों को नजर अन्दाज  करना चाहिए। अपने आपको मानसिक मजबूती के साथ नजरअन्दाज करने का आदी बनाइये।
 जरूरी नहीं कि हम हर एक्शन का एक रिएक्शन दिखाएं। हमारे कुछ रिएक्शन हमें केवल नुकसान ही नहीं पहुंचाएंगे बल्कि हो सकता है कि हमारी जान ही ले लें।


 *सबसे बड़ी शक्ति सहन शक्ति है।*